आग , ऋण और शत्रु के साथ क्या करना चाहिए ? Fire, Loan & Enemy how you handle with them ?
आग , ऋण और शत्रु के साथ क्या करना चाहिए ?
आग , ऋण और शत्रु ये तीनों हमारे लिए अलग अलग परिस्थिति में लाभकारी और हानिकारक हो सकते है l आज के परिपेक्ष में देखें तो ऋण लाभकारी है जैसे लोग घर एवं वाहन के लिए अधिकांश ऋण लेते है बड़े बड़े कल कारखाने आज ऋण के कारण ही अस्तित्व में आ पाते है और चलते है l किन्तु यदि ऋण नहीं चुकाया तो वो आपके लिए हानिकारक हो सकता है l कई लोग ऋण के चक्कर से कभी बहार नहीं निकल पाते है l
शास्त्रों में लिखा गया है की
अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च ।
पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ॥
यदि कोई आग, ऋण, या शत्रु अल्प मात्रा अथवा न्यूनतम सीमा तक भी अस्तित्व में बचा रहेगा तो बार बार बढ़ेगा ; अत: इन्हें थोड़ा सा भी बचा नही रहने देना चाहिए । इन तीनों को सम्पूर्ण रूप से समाप्त ही कर डालना चाहिए ।
यदि आग को पूरी तरह नहीं बुझा दिया जय तो वो फिर जवाला में बदल सकता है l ठीक उसी तरह ऋण को पूरी तरह चूका नहीं दिया गया तो वो बढ़ता ही जायेगा l
शत्रु को यदि छोड़ दिया गया तो वो पुनः संगठित हो के पूरी योजना दल बल के साथ आप पे आक्रमण करेगा आधुनिक योग में छुपे हुए शत्रु होते है जिसे पहचाने की आवस्यकता होती है
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