गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

हम सब जानते है की बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता है , आपको महाभारत का वो एकलव्य तो याद ही होगा , जो गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बना के उनको देख देख के धनुर्विद्या में निपुण हुआ था । आग गुरु शिक्षक के रूप में हमारे पास है उनकी जितनी भी प्रसंसा की जय कम है 

गुरु के विषय उनकी महत्ता के विषय में जितना भी कहा जाय कम है । समय समय पे बहुत कुछ लिखा और बताया गया है प्रस्तुत है गुरु के सम्बन्ध में कुछ श्लोक और दोहे हिंदी व्याखया के साथ 


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गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा ।

गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।


अर्थात : गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है।

           गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

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गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।


अर्थात :  गुरु और गोविन्द यदि दोनों खड़े है तो किसे पहले चरणस्पर्श करना चाइये I 

            गुरु के चरण को स्पर्श कर के गोविन्द अर्थात भगवान को प्रणाम करना चाइये 


क्यूंकि गुरु के ज्ञान के कारन हम भगवान को पहचान सके I 

इस में कबीर दास ने गुरु की महिमा को उसके ज्ञान को सर्वोपरि बताया है 

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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

साधु अर्थात ज्ञानी से ज्ञान की बात पूछनी चाहिए न की उसकी जाती की 


अर्थात : जब हम बाजार में जाते है तलवार खरीदने के लिए तो हम तलवार का मोल-भाव करते है

            न की उसकी म्यान (तलवार रखने वाली खोली का ) ठीक उसी तरह हमें साधु ज्ञानी से ज्ञान 

            की बात पूछनी चाहिए उसकी जाती और अन्य प्रश्न नहीं करना चाहिए 

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गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।

गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।

गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव है  गुरु के बिना मुक्ति नहीं मिल सकती है 

क्यंकि आप अपने दुर्गोनो को नहीं देख पाते है और सच्चा राह कौन सा है ये हमें 

नहीं पता चलता है  गुरु के दिए ज्ञान के अभाव में वह सत्य की पहचान भी नहीं 

कर पाता है। गुरु ही सत्य सत्य की पहचान करवाता है तभी वो सारे दोषों से मुक्त हो पता है ।

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